Ganesh Chalisa In Hindi.

Shri Shiv Tandav Stotram In Hindi

Sai Baba Dhoop Aarti In Hindi

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Sai Baba Aarti / Sai Aarti / Shirdi Sai Aarti

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Sai Baba Aarti / Sai Aarti / Shirdi Sai Aarti


आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ।


चरणों के तेरे हम पुजारी साईं बाबा ॥

विद्या बल बुद्धि, बन्धु माता पिता हो

तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो

हे जगदाता अवतारे, साईं बाबा ।

आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥


ब्रह्म के सगुण अवतार तुम स्वामी


ज्ञानी दयावान प्रभु अंतरयामी

सुन लो विनती हमारी साईं बाबा ।

आरती उतारे हम तुम्हारी साईं बाबा ॥

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आदि हो अनंत त्रिगुणात्मक मूर्ति


सिंधु करुणा के हो उद्धारक मूर्ति

शिरडी के संत चमत्कारी साईं बाबा ।

आरती उतारे हम तुम्हारी साईं बाबा ॥


भक्तों की खातिर, जनम लिये तुम


प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम दिये तुम

दुखिया जनों के हितकारी साईं बाबा ।

आरती उतारे हम तुम्हारी साईं बाबा ॥

Navgrah Chalisa In Hindi ( श्री नवग्रह चालीसा ) Shree Navgrah Chalisa

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Navgrah Chalisa In Hindi ( श्री नवग्रह चालीसा ) 


जन्म कुंडली में अगर सभी ग्रहो से परेशानी है तब अकसर नवग्रह शांति पाठ की सलाह दी जाती है लेकिन हर कोई व्यक्ति इतनी सामर्थ्य नहीं रखता कि ब्राह्मण को बुलाकर शांति पाठ करा सके, इसलिए नवग्रह मन्त्र जाप अथवा नवग्रह स्तोत्र की सलाह दी जाती है. लेकिन यहाँ हम अपने पाठको को श्रीनवग्रह चालीसा के पाठ को दे रहे है जो नवग्रहों की शांति का सर्वोत्तम उपाय माना जाता है.

कोई भी व्यक्ति जब इस पाठ का पहली बार आरम्भ करे तो उसे इस पाठ को किसी शुभ दिन में शुरू करना चाहिए जैसे अमृत सिद्धि योग या गुरु पुष्य योग या पूर्णिमा का दिन या शुक्ल पक्ष का कोई शुभ दिन. जिस दिन पाठ शुरू करे तो स्नान आदि से निबट कर स्वच्छ वस्त्र पहन कर उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर मुँह कर के बैठे. नवग्रह के नाम से नौ दीये जलाएं और उसके बाद पूरी श्रद्धा से नियमित रूप से रोज पाठ करे.

लगभग तीन महीने लगातार पाठ करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. जो भी रुकावट अथवा बाधाएं व्यक्ति के जीवन में होती है सभी दूर हो जाएगीं. मानसिक कष्ट हो या शारीरिक कष्ट हो – व्यक्ति सभी से निजात पाता है. घर में सुख-समृद्धि रहती है और वातावरण में सकारात्मकता भी रहती है.


चौपाई


श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय।

नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय।।

जय जय रवि शशि सोम बुध जय गुरु भृगु शनि राज।

जयति राहु अरु केतु ग्रह करहुं अनुग्रह आज।।


श्री सूर्य स्तुति  


प्रथमही रवि कहं नावों माथा, करहु कृपा जन जानि अनाथा,

हे आदित्य दिवाकर भानु, मै मति मन्द महा अज्ञानु,

अब निज जन कहं हरहु क्लेशा, दिनकर द्वादश रूप दिनेशा,

नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, अर्क मित्र अघ ओघ पक्षमाकर !!


श्री चन्द्र स्तुति


शशि मयंक रजनी पति स्वामी, चंद्र कलानिधि नमो नमामि,

राकापति हिमांशु राकेशा, प्रणवत जन तन हरहु कलेशा,

सोम इंदु विधु शान्ति सुधाकर, शीत रश्मि औषधि निशाकर ,

तुम्ही शोभित सुंदर भाल महेशा, शरण शरण जन हरहु कलेशा !!


श्री मंगल स्तुति


जय जय मंगल सुखा दाता, लोहित भौमादिक विख्याता ,

अंगारक कुंज रुज ऋणहारि, करहु दया यही विनय हमारी ,

हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, लोहितांगा जय जन अघनाशी ,

अगम अमंगल अब हर लीजै, सकल मनोरथ पूरण कीजै !!


श्री बुध स्तुति


जय शशि नंदन बुध महाराजा, करहु सकल जन कहं शुभ काजा,

दीजै बुद्धिबल सुमति सुजाना, कठिन कष्ट हरी करी कल्याणा ,

हे तारासुत! रोहिणी नंदन! चंद्र सुवन दु:ख द्वंद निकन्दन,

पूजहु आस दास कहुं स्वामी, प्रणत पाल प्रभु नमो नमामि !!


श्री बृहस्पति स्तुति  


जयति जयति जय श्री गुरु देवा, करहु सदा तुम्हरी प्रभु सेवा,

देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, इन्द्र पुरोहित विद्या दानी,

वाचस्पति बागीश उदारा, जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा,

विद्या सिन्धु अंगीरा नामा, करहु सकल विधि पूरण कामा !


श्री शुक्र स्तुति


शुक्र देव पद तल जल जाता, दास निरंतर ध्यान लगाता,

हे उशना भार्गव भृगु नंदन, दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन,

भृगुकुल भूषण दूषण हारी, हरहु नैष्ट ग्रह करहु सुखारी,

तुही द्विजवर जोशी सिरताजा, नर शरीर के तुम्हीं राजा !!


श्री शनि स्तुति  


जय श्री शनिदेव रवि नन्दन, जय कृष्णो सौरी जगवन्दन।

पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, वप्र आदि कोणस्थ ललामा।

वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, क्षण महं करत रंक क्षण राजा।

ललत स्वर्ण पद करत निहाला, हरहुं विपत्ति छाया के लाला।


श्री राहु स्तुति  


जय जय राहु गगन प्रविसइया, तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया।

रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा, शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।

सैहिंकेय तुम निशाचर राजा, अर्धकाय जग राखहु लाजा।

यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु, सदा शान्ति और सुख उपजावहु।


श्री केतु स्तुति  


जय श्री केतु कठिन दुखहारी, करहु सुजन हित मंगलकारी।

ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला, घोर रौद्रतन अघमन काला।

शिखी तारिका ग्रह बलवान, महा प्रताप न तेज ठिकाना।

वाहन मीन महा शुभकारी, दीजै शान्ति दया उर धारी। 

नवग्रह शांति फल  


तीरथराज प्रयाग सुपासा, बसै राम के सुन्दर दासा।

ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, दुर्वासाश्रम जन दुख हारी।

नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, जन तन कष्ट उतारण सेतू।

जो नित पाठ करै चित लावै, सब सुख भोगि परम पद पावै।।



दोहा  

धन्य नवग्रह देव प्रभु, महिमा अगम अपार।

चित नव मंगल मोद गृह जगत जनन सुखद्वार।।

यह चालीसा नवोग्रह, विरचित सुन्दरदास।

पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, सर्वानन्द हुलास।।

Jwala Mata Chalisa ( माता ज्वाला देवी चालीसा ) Jwala Mata Chalisa Lyrics in Hindi

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Jwala Mata Chalisa ( माता ज्वाला देवी चालीसा )

।।दोहा।।


शक्ति पीठ माँ ज्वालपा धरूं तुम्हारा ध्यान ।

हृदय से सिमरन करूं दो भक्ति वरदान ।।

सुख वैभव सब दीजिए बनूं तिहारा दास ।

दया दृष्टि करो भगवती आपमें है विश्वास ।।

।।चौपाई।।


नमस्कार हे ज्वाला माता । दीन दुखी की भाग्य विधाता ।।

ज्योति आपकी जगमग जागे । दर्शन कर अंधियारा भागे ।।

नव दुर्गा है रूप तिहारा । चौदह भुवन में दो उजियारा ।।

ब्रह्मा विष्णु शंकर द्वारे । जै मां जै मां सभी उच्चारे ।।

ऊँचे पर्वत धाम तिहारा । मंदिर जग में सबसे न्यारा ।।

काली लक्ष्मी सरस्वती मां । एक रूप हो पार्वती मां ।।

रिद्धि-सिद्धि चंवर डुलावें । आ गणेश जी मंगल गावें ।।

गौरी कुंड में आन नहाऊं । मन का सारा मैल हटाऊं ।।

गोरख डिब्बी दर्शन पाऊं ।  बाबा बालक नाथ मनाऊं ।।

आपकी लीला अमर कहानी । वर्णन कैसे करें ये प्राणी ।।

राजा दक्ष ने यज्ञ रचाया । कंखल हरिद्वार सजाया ।।

शंकर का अपमान कराया । पार्वती ने क्रोध दिखाया ।।

मेरे पति को क्यों ना बुलाया । सारा यज्ञ विध्वंस कराया ।।

कूद गई माँ कुंड में जाकर । शिव भोले से ध्यान लगाया ।।

गौरा का शव कंधे रखकर चले नाथ जी बहुत क्रोध कर ।।

विष्णु जी सब जान के माया । चक्र चलाकर बोझ हटाया ।।

अंग गिरे जा पर्वत ऊपर । बन गए मां के मंदिर उस पर ।।

बावन है शुभ दर्शन मां के । जिन्हें पूजते हैं हम जा के ।।

जिह्वा गिरी कांगड़े ऊपर । अमर तेज एक प्रगटा आकर ।।

जिह्वा पिंडी रूप में बदली । अनसुइया गैया वहां निकली ।।

दूध पिया मां रूप में आके । घबराया ग्वाला वहां जाके ।।

मां की लीला सब पहचाना । पाया उसने वहींं ठिकाना ।।

सारा भेद राजा को बताया । ज्वालाजी मंदिर बनवाया ।।

चंडी मां का पाठ कराया । हलवे चने का भोग लगाया ।।

कलयुग वासी पूजन कीना । मुक्ति का फल सबको दीना ।।

चौंसठ योगिनी नाचें द्वारे । बावन भैरो हैं मतवारे ।।

ज्योति को प्रसाद चढ़ावें । पेड़े दूध का भोग लगावें ।।

ढोल ढप्प बाजे शहनाई । डमरू छैने गाएं बधाई ।।     

तुगलक अकबर ने आजमाया । ज्योति कोई बुझा नहीं पाया ।।
नहर खोदकर अकबर लाया । ज्योति पर पानी भी गिराया ।।

लोहे की चादर थी ठुकवाई । जोत फैलकर जगमग आई ।।

अंधकार सब मन का हटाया । छत्र चढ़ाने दर पर आया ।।

शरणागत को मां अपनाया । उसका जीवन धन्य बनाया ।।

तन मन धन मैं करुँ न्यौछावर । मांगूं मां झोली फैलाकर ।।

मुझको मां विपदा ने घेरा । काम क्रोध ने लगाया डेरा ।।

सेज भवन के दर्शन पाऊं । बार-बार मैं शीश नवाऊं ।।

जै जै जै जगदम्ब ज्वालपा । ध्यान रखेगी तू ही बालका ।।

ध्यानु भगत तुम्हारा यश गाया । उसका जीवन धन्य बनाया ।।

कलिकाल में तुम वरदानी । क्षमा करो मेरी नादानी ।।

शरण पड़े को गले लगाओ । ज्योति रूप में सन्मुख आओ ।।


।।दोहा।।


रहूं पूजता ज्वालपा जब तक हैं ये स्वांस ।

“ओम” को दर प्यारा लगे तुम्हारा ही विश्वास ।।

VIDEO OF JWALA MATA CHALISA ( माता ज्वाला देवी चालीसा )



Khatu Shyam Chalisa In Hindi ( श्री खाटू श्याम चालीसा और आरती ) Shri Khatu Shyam Chalisa

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Khatu Shyam Chalisa In Hindi ( श्री खाटू श्याम चालीसा और आरती ) 

श्री खाटू श्याम चालीसा


।।दोहा।।

श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमिरि सच्चिदानन्द ।

श्याम चालीसा भणत हूं, रच चौपाई छंद ।।

।।चौपाई।।


श्याम श्याम भजि बारम्बारा । सहज ही हो भवसागर पारा ।।

इन सम देव ना दूजा कोई । दीन दयालु न दाता होई ।।

भीमसुपुत्र अहिलवती जाया । कहीं भीम का पौत्र कहाया ।।

यह सब कथा सही कल्पनान्तर । तनिक ना मानों इसमें अन्तर ।।

बर्बरीक विष्णु अवतारा । भक्तन हेतु मनुज तनु धारा ।

वसुदेव देवकी प्यारे । यशुमति मैया नन्द दुलारे ।।

मधुसूदन गोपाल मुरारी । बृजकिशोर गोवर्धन धारी ।।

सियाराम श्री हरि गोविन्दा । दीनपाल श्री बाल मुकन्द ।।

दामोदर रणछोड़ बिहारी । नाथ द्वारिकाधीश खरारी ।।

नरहरि रूप प्रह्लाद प्यारा । खम्भ फारि हिरनाकुश मारा ।।

राधा वल्लभ रुक्मिणी कंता । गोपी वल्लभ कंस हनंता ।।

मनमोहन चित्तचोर कहाए । माखन चोरि चोरि कर खाए ।।

मुरलीधर यदुपति घनश्यामा । कृष्ण पतितपावन अभिरामा ।।

मायापति लक्ष्मीपति ईसा । पुरुषोत्तम केशव जगदीशा ।।

विश्वपति त्रिभुवन उजियारा । दीन बन्धु भक्तन रखवारा ।।

प्रभु का भेद कोई ना पाया । शेष महेश थके मुनिराया ।।

नारद शारद ऋषि योगिन्दर । श्याम श्याम सब रटत निरन्तर ।।

करि कोविद करि सके न गिनन्ता । नाम अपार अथाह अनन्ता ।।

हर सृष्टि हर युग में भाई । ले अवतार भक्त सुखदाई ।।

हृदय मांहि करि देखु विचारा । श्याम भजे तो हो निस्तारा ।।

कीर पढ़ावत गणिका तारी । भीलनी की भक्ति बलिहारी ।।

सती अहिल्या गौतम नारी । भई श्राप वश शिला दुखारी ।।

श्याम चरण रज नित लाई । पहुंची पतिलोक में जाई ।।

अजामिल अरू सदन कसाई । नाम प्रताप परम गति पाई ।।

जाके श्याम नाम अधारा । सुख लहहि दु:ख दूर हो सारा ।।

श्याम सुलोचन है अति सुन्दर । मोर मुकुट सिर तन पीताम्बर ।।

गल वैजयन्ति माल सुहाई । छवि अनूप भक्तन मन भाई ।।

श्याम श्याम सुमिरहु दिनराती । शाम दुपहरि अरू परभाती ।।

श्याम सारथी जिसके रथ के । रोड़े दूर होय उस पथ के ।।

श्याम भक्त न कहीं पर हारा । भीर परि तब श्याम पुकारा ।।

रसना श्याम नाम रस पी ले । जी ले श्याम नाम के हाले ।।

संसारी सुख भोग मिलेगा । अन्त श्याम सुख योग मिलेगा ।।

श्याम प्रभु हैं तन के काले । मन के गोरे भोले भाले ।।

श्याम संत भक्तन हितकारी । रोग दोष अघ नाशै भारी ।।

प्रेम सहित जे नाम पुकारा । भक्त लगत श्याम को प्यारा ।।

खाटू में है मथुरा वासी । पार ब्रह्म पूरण अविनासी ।।

सुधा तान भरि मुरली बजाई । चहुं दिशि नाना जहां सुनि पाई ।।

वृद्ध बाल जेते नारी नर । मुग्ध भये सुनि वंशी के स्वर ।।

दौड़ दौड़ पहुंचे सब जाई । खाटू में जहां श्याम कन्हाई ।।

जिसने श्याम स्वरूप निहारा । भव भय से पाया छुटकारा ।।

 ।।दोहा।।


श्याम सलोने सांवरे, बर्बरीक तनु धार ।

इच्छा पूर्ण भक्त की, करो न लाओ बार ।। 

श्री खाटू श्याम जी की आरती


ऊँ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे ।

खाटूधाम बिराजत, अनुपम रूप धरे ।। ऊँ जय…

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चँवर ढुरे ।

तन केसरिया बागो, कुंडल श्रवण पड़े ।। ऊँ जय…

गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे ।।

खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले ।। ऊँ जय…

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे ।

सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे ।। ऊँ जय…

झांझ कटोरा और घड़ियावल, शंख मृदंग घुरे ।

भक्त आरती गावे, जय जयकार करे ।। ऊँ जय…

जो ध्यावे फल पावे, सब दुख से उबरे ।।

सेवक जन निज मुख से, श्रीश्याम-श्याम उचरे।। ऊँ जय…

“श्री श्याम बिहारी जी की, आरती जो कोई नर गावे ।

कहत “आलूसिंह” स्वामी, मनवांछित फल पावे ।। ऊँ जय…

जय श्रीश्याम हरे, बाबा जय श्रीश्याम हरे ।

निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे ।। ऊँ जय…

Sheetla Mata Chalisa ( श्री शीतला चालीसा और शीतला आरती ) Shitla Chalisa

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Sheetla Mata Chalisa ( श्री शीतला चालीसा और शीतला आरती )


।।दोहा।।

जय-जय माता शीतला, तुमहिं धरै जो ध्यान ।

होय विमल शीतल हृदय, विकसै बुद्धि बलज्ञान ।।

घट-घट वासी शीतला, शीतल प्रभा तुम्हार ।

शीतल छइयां में झुलई, मइया पलना डार ।।


।।चौपाई।।

जय जय जय शीतला भवानी । जय जग जननि सकल गुणखानी ।।

गृह-गृह में शक्ति तुम्हारी राजित । पूरण शरदचंद्र समसाजित ।।

विस्फोटक से जलत शरीरा । शीतल करत हरत सब पीरा ।।

मातु शीतला तव शुभनामा । सबके गाढ़े आवहिं कामा ।।

शोकहरी शंकरी भवानी । बाल-प्राणरक्षी सुख दानी ।।

शुचि मार्जनी कलश कर राजै । मस्तक तेज सूर्य सम राजै ।।

चौंसठ योगिन संग में गावैं । वीणा ताल मृदंग बजावैं ।।

नृत्य नाथ भैरों दिखरावैं । सहज शेष शिव पार न पावैं ।।

धन्य-धन्य धात्री महारानी । सुर नर मुनि तब सुयश बखानी ।।

ज्वाला रूप महा बलकारी । दैत्य एक विस्फोटक भारी ।।

घर-घर प्रविशत कोई न रक्षत । रोग रूप धरि बालक भक्षत ।।

हाहाकार मच्यो जगभारी । सक्यो न जब संकट टारी ।।

तब मैया धरि अद्भुत रूपा । कर में लिए मार्जनी सूपा ।।

विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्ह्यो । मुसल प्रहार बहुविधि कीन्ह्यो ।।

बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा । मैया नहीं भल मैं कछु चीन्हा ।।

अबनहिं मातु, काहुगृह जइहौं । जहं अपवित्र सकल दुख हरिहैं ।।

भभकत तन, शीतल ह्वै जइहैं । विस्फोटक भयघोर नसइहैं ।।

श्री शीतलहिं भजे कल्याना । वचन सत्य भाषे भगवाना ।।

विस्फोटक भय जिहि गृह भाई । भजै देवि कहं यही उपाई ।।

कलश शीतला का सजवावै । द्विज से विधिवत पाठ करावै ।।

तुम्हीं शीतला जग की माता । तुम्हीं पिता जग की सुखदाता ।।

नमो सुक्खकरणी दुखहरणी । नमो नमो जगतारणि तरणी ।।

नमो नमो त्रैलोक्य वंदिनी । दुखदारिद्रादिक निकंदनी ।।

श्री शीतला, शेढ़ला । महला । रुणलीह्युणनी मातु मंदला ।।

हो तुम दिगम्बर तनुधारी । शोभित पंचनाम असवारी ।।

रासभ, खर बैशाख सुनंदना । गर्दभ दुर्वाकंद निकंदना ।।

सुमिरत संग शीतला माई । जाहि सकल दुख दूर पराई ।।

गलका, गलगंडादि जुहोई । ताकर मंत्र न औषधि कोई ।।

एक मातु जी का आराधन । और नहिं कोई है साधन ।।

निश्चय मातु शरण जो आवै । निर्भय मन इच्छित फल पावै ।।

कोढ़ी, निर्मल काया धारै । अंधा । दृग-निज दृष्टि निहारै ।।

वन्ध्या नारि पुत्र को पावै । जन्म दरिद्र धनी होई जावै ।।

मातु शीतला के गुण गावत । लखा मूक को छंद बनावत ।।

यामे कोई करै जनि शंका । जम में मैया का ही डंका ।।

भनत “ओम” प्रभुदासा । तट प्रयाग से पूरब पासा ।।

पुरी तिवारी मोर मोर निवासा । ककरा गंगा तट दुर्वासा ।।

अब विलम्ब मैं तोरि पुकारत । मातु कृपा कौ बाट निहारत ।।

पड़ा क्षर तव आस लगाई । रक्षा करहु शीतला माई ।।


श्री शीतला जी की आरती

जै शीतला माता मैया जै शीतला माता ।

दुख निवारण वाली सुख की वरदाता ।।

गर्दभ तुमरा वाहन शांत सदा रहता ।।

दुख दरिद्रता हरता कष्ट सभी सहता ।।

चामुंडा कहलाईं अद्भुत रूप धरा ।।

नग्न रूप में रहतीं जल हथ कलश भरा ।।

रोम रोम में प्रगटो विस्फोटक शक्ति ।।

निर्भय होकर रहतीं मुक्त करो हंसती ।।

जब तक तुमरा पहरा स्वच्छ रहे आन ।।

नीम की पत्ती भावे झाड़ू मन भावन ।।

तीखा रस नहीं भावे बासी स्वाद लगे ।।

कच्चे दूध की लस्सी सेवा भाव जगे ।।

ऋषि मुनि जन तुमरी महिमा गाई ।।

धन्वंतरी ने ध्याया चामुंडा माई ।।

चैत्र में मेला लगता हर मंदिर भारी ।।

सोमवार की पूजा करते नर नारी ।।

तेरे तालाब की माटी अंग लगाए जो ।।

“ओम” कभी जीवन में कष्ट ना पाए वो।।

Giriraj Chalisa Lyrics In Hindi ( श्री गिरिराज चालीसा और आरती )

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Giriraj Chalisa Lyrics In Hindi (श्री गिरिराज चालीसा और आरती)


।।दोहा।।i 

बंदहुं वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्याना ।

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ।।

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार ।।

बरनौ श्री गिरिराज यश, निज मति के अनुसार ।।


।।चौपाई।।

जय हो जय बंदित गिरिराजा । ब्रज मंडल के श्री महाराजा ।।

विष्णु रूप तुम हो अवतारी । सुंदरता पै जग बलिहारी ।।

स्वर्ण शिखर अति शोभा पामें । सुर मुनि गण दरशन कूं आमें ।।

शांत कंदरा स्वर्ग समाना । जहां तपस्वी धरते ध्याना ।।

द्रोणगिरि के तुम युवराजा । भक्तन के साधौ हौ काजा ।।

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाए । जोर विनय कर तुम कूं लाए ।।

मुनिवर संघ जब ब्रज में आए । लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराए ।।

विष्णु धाम गौलोक सुहावन । यमुना गोवर्धन वृंदावन ।।

देख देव वन में ललचाए । बास करन बहु रूप बनाए ।।

कोउ बानर कोउ मृग के रूपा । कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ।।

आनंद लें गोलोक धाम के । परम उपासक रूप नाम के ।।

द्वापर अंत भये अवतारी । कृष्णचंद्र आनंद मुरारी ।।

महिमा तुम्हारी कृष्ण बखानी । पूजा करिबे की मन ठानी ।।

ब्रजवासी सबके लिए बुलाई । गोवर्द्धन पूजा करवाई ।।

पूजन कूं व्यंजन बनवाए । ब्रजवासी घर घर ते लाए ।।

ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी । सहस भुजा तुमने कर लीनी ।।

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में । मांग मांग के भोजन पामें ।।

लखि नर नारी मन हरषामें । जै जै जै गिरिवर गुण गामें ।।

देवराज मन में रिसियाए । नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ।।

छांया कर ब्रज लियौ बचाई । एकउ बूंद न नीचे आई ।।

सात दिवस भई बरसा भारी । थके मेघ भारी जल धारी ।।

कृष्णचंद्र ने नख पै धारे । नमो नमो ब्रज के पखवारे ।।

करि अभिमान थके सुरसाई । क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई ।।

त्राहि माम् मैं शरण तिहारी । क्षमा करो प्रभु चूक हमारी ।।

बार बार बिनती अति कीनी । सात कोस परिकम्मा दीनी ।।

संग सुरभि ऎरावत लाए । हाथ जोड़कर भेंट गहाए ।।

अभय दान पा इंद्र सिहाए । करि प्रणाम निज लोक सिधाए ।।
जो यह कथा सुनैं चित्त लावैं । अंत समय सुरपति पद पावैं ।।

गोवर्द्धन है नाम तिहारौ । करते भक्तन कौ निस्तारौ ।।

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें । तिनके दुख दूर ह्वै जावें ।।

कुण्डन में जो करें आचमन । धन्य धन्य वह मानव जीवन ।।

मानसी गंगा में जो नहावें । सीधे स्वर्ग लोग कूं जावें ।।

दूध चढ़ा जो भोग लगावै । आधि व्याधि तेहि पास न आवें ।।

जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें । मन वांछित फल निश्चय पावें ।

जो नर देत दूध की धारा । भरौं रहे ताकौ भंडारा ।।

करें जागरण जो नर कोई । दुख दरिद्र भय ताहि न होई ।।

“ओम” शिलामय निज जन त्राता । भक्ति मुक्ति सरबस के दाता ।।

पुत्रहीन जो तुम कूं ध्यावें । ताकूं पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें ।।

दंडौती परिकम्मा करहीं । ते सहजहि भवसागर तरहीं ।।

कलि में तुमसम देव न दूजा ।। सुर नर मुनि सब करते पूजा ।। 

।।दोहा।।


जो यह चालीसा पढ़े, शुद्ध चित्त लाय ।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करैं सहाय ।

क्षमा करहुं अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज ।

श्याम बिहारी शरण में, गोवर्द्धन महाराज ।।


श्री गिरिराज जी की आरती


ऊँ जय जय जय गिरिराज, स्वामी जय-जय गिरिराज ।

संकट में तुम राखौ, निज भक्तन की लाज ।।

इंद्रादिक सब सुर मिल तुम्हरौं ध्यानु धरैं ।

रिषि मुनिजन यश गावें, ते भवसिंधु तरैं ।।

सुंदर रूप तुम्हारौ श्याम सिला सोहें ।

वन उपवन लखि-लखि के भक्तन मन मोहें ।।

मध्य मानसी गगा कलि के मल हरनी ।

तापै दीप जलावें उतरें वैतरनी ।।

नवल अप्सरा कुण्ड सुहावन-पावन सुखकारी ।

बाएं राधा-कुंड नहावें महा पापहारी ।।

तुम्हीं मुक्ति के दाता कलियुग के स्वामी ।

दीनन के हो रक्षक प्रभु अंतरयामी ।।

हम हैं शरण तुम्हारी, गिरिवर गिरधारी ।

देवकीनंदन कृपा करो, हे भक्तन हितकारी ।।

जो नर दे परिकम्मा पूजन पाठ करें ।

गावें नित्त आरती पुनि नहीं जनम धरें ।।